भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुन्दर कविता / असद ज़ैदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह सब कुछ अपने साथ ले जाती है

खाने के लिए सुन्दर चीज़ें पहनने के लिए सुन्दर कपड़े
बीमार दिखने के लिए सुन्दर बीमारियाँ
उसे आराम करने के लिए चाहिए पाठ्यपुस्तक
राजकीय अनुमोदन और सभी पक्षों का समर्थन
उसे अपने लिए चाहिए सब कुछ

उसे पसीना नहीं आता
पर वह चाहती है मुक्तिबोध आकर उसे पंखा झलें

कोई मनहूस चला जाता है
लिखकर सुन्दर कविता
अपने सौन्दर्य में लिपटी हुई उसी में खोई हुई
उसी में बरबाद
जिसे यह भी नहीं ज़रूरत कि कोई उसे बचा ले
वह मनुष्य जाति की बदहाली का अन्तिम प्रमाण लगती है

इस सम्वाद में भी क्या रखा है कि
सुन्दर कविता लिखी नहीं जाती — वह अपने को ख़ुद से लिख लेती है
जैसे मौत से कुछ कहा नहीं जाता, वह ख़ुद से आ जाती है
(“जैसे” कहने से उपमा बनती हो जैसे; जैसे में ही तसल्ली ढूँढ़ लेता है कवि)
वह मौत जैसी नहीं होती, साक्षात मौत ही होती है, बाबू

सुन्दर कविता से
स्कूली बच्चों को दूर रखना चाहिए
और गर्भवती माँओं को
क्यों लिटाते हो इतनी जल्दी उन्हें सर्वनाश की बग़ल में

जून 2019