सुन्दर विश्वासों से ही
बनता रे सुखमय-जीवन,
ज्यों सहज-सहज साँसों से
चलता उर का मृदु स्पन्दन।
हँसने ही में तो है सुख
यदि हँसने को होवे मन,
भाते हैं दुख में आते
मोती-से आँसू के कण!
महिमा के विशद-जलधि में
हैं छोटे-छोटे-से कण,
अणु से विकसित जग-जीवन,
लघु अणु का गुरुतम साधन!
जीवन के नियम सरल हैं,
पर है चिर-गूढ़ सरलपन;
है सहज मुक्ति का मधु-क्षण,
पर कठिन मुक्ति का बन्धन!
रचनाकाल: जनवरी’ १९३२