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सुन्यो तेरो पतित-पावन नाम! / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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  (राग मलार-ताल रूपक)

 सुन्यो तेरो पतित-पावन नाम!
 अजामिल-से पतितको तैं दियो अपनो धाम॥
 याध-खग-मृग जे रहे नित धरम तें उपराम।
 किये पावन अति पतित ते भये पूरन-काम॥
 कठिन कलि के काल अपि तारे अनेक कुंठाम।
 धरमहीन, मलीन, पातक निरत आठों जाम॥
 पाप करत उछाह-जुत, मम मन न लीन्ह बिराम।
 तदपि अजहुँ न मोहि तार्‌यौ, किमि बिसार्‌यौ नाम॥