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सुन भाई हरगुनिया, निरगुनिया फाग / प्रेम शर्मा
Kavita Kosh से
जल ही
जल नहीं रहा,
आग नहीं
आग
सूरत बदले
चेहरे
सीरत बदला
जहान,
पानी उतरा
दर्पण,
खिड़की-भर
आसमान,
ढलके
रतनार कंवल,
पूरते
सुहाग,
जीते-
मरते शरीर
दुनिया
आती-जाती,
जूझते हुए
कन्धे,
छीजती हुई
छाती,
कल ही
कल नहीं रहा
आज नहीं
आज,
सुन भाई
हरगुनिया
निरगुनिया
फाग