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सुन रखा था तजरबा लेकिन ये पहला था मिरा / शहराम सर्मदी

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सुन रखा था तजरबा लेकिन ये पहला था मिरा
जब किसी के नाम पर बे-वज्ह दिल धड़का मिरा

इक उचटती सी नज़र उस पर गई और यूँ लगा
खो गया जैसे कहीं हर्फ़-ए-तमन्ना सा मिरा

इश्क़ में मैं भी बहुत मोहतात था सब झूट है
और ये साबित कर गया कल रात का रोना मिरा

एक हर्फ़-ए-हक़ की ता-नोक-ए-ज़बाँ आमद मगर
मस्लहत ख़ामोशी और आमन्ना-सद्दक़ना मिरा

अपने मेहवर पर ज़मीं आए तो लम्हा भर सही
देर से ख़ाली पड़ा है ख़ाका-ए-दुनिया मिरा