भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुन लें जो मस्ते- मए-ऐश हैं एवानों में / मेला राम 'वफ़ा'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुन लें जो मस्ते- मए-ऐश हैं एवानों में
ज़िन्दगी करवटें लेती हैं सियह ख़ानों में

ख़ौफ़ तखरीब का तारी है जहाँ वालों पर
दौड़ हथ्यारों की जारी है जहां बानों में

ख़ूने-इंसां के नज़र आते हैं प्यासे-इंसां
नाम को भी नहीं इंसानियत इंसानों में

ऐ कि वीरानों में गुलज़ार खिलाते हो तुम
अगले गुलज़ार बदल जाएं न वीरानों में

ऐ 'वफ़ा' दूर बहुत दूर है वो ख़ुशहाली
जो नज़र आती है सरकार के एलानों में।