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सुन लें जो मस्ते- मए-ऐश हैं एवानों में / मेला राम 'वफ़ा'
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सुन लें जो मस्ते- मए-ऐश हैं एवानों में
ज़िन्दगी करवटें लेती हैं सियह ख़ानों में
ख़ौफ़ तखरीब का तारी है जहाँ वालों पर
दौड़ हथ्यारों की जारी है जहां बानों में
ख़ूने-इंसां के नज़र आते हैं प्यासे-इंसां
नाम को भी नहीं इंसानियत इंसानों में
ऐ कि वीरानों में गुलज़ार खिलाते हो तुम
अगले गुलज़ार बदल जाएं न वीरानों में
ऐ 'वफ़ा' दूर बहुत दूर है वो ख़ुशहाली
जो नज़र आती है सरकार के एलानों में।