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सुन लेउ सबरे हक्क-बँटैया चार दिना कौ मेला है / मंगलेश
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सुन लेउ सबरे हक्क-बँटैया चार दिना कौ मेला है।
रंक बचें नईं राजा, भैया-चार दिना कौ मेला है॥
जैसी करनी वैसी भरनी कौ सिद्धान्त अटल है तौ।
फिर काहे कौ रोनों? भैया-चार दिना कौ मेला है॥
यै हू चँइयै वौ हू चँइयै सुरसा सौ म्हों फाटौ'इ जाय।
कब समझिंगे लोग-लुगैया-चार दिना कौ मेला है॥
राबन कुंभकरन जैसे वीर'न के कुल में हू भैया।
बचौ न कोऊ दीप जरैया-चार दिना कौ मेला है॥
मंगलेश सब कौ सब कछ धरती पै ही रह जानौ है।
कर लेउ कितनी'उ ताता थैया-चार दिना कौ मेला है॥