भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुन लो हठीले कान्ह गोकुला को आना जाना / रमादेवी
Kavita Kosh से
सुन लो हठीले कान्ह गोकुला को आना जाना,
चाहत छुड़ाना दैया बात कछू जानै ना।
सुनत हज़ारों ताना मिलत बहाना नाहिं,
देखना दिखाना श्याम शर मो पै ठानै ना॥
जाना बरसाना मोर इतै फेरि आना,
लाल शोर ना मचाना कंस राजा सुनि पावै ना।
'रमा' ने रमाना चित्त दही है बिराना,
लाल तनक चखाये बिना मन मोर मानै ना॥