भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुन साहिबा सुन प्यार की धुन / रविन्द्र जैन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुन साहबा सुन प्यार की धुन
हो मैने तुझे चुन लिया तू भी मुझे चुन
सुन साहबा सुन ...

कोई हसीना क़दम पहले बढ़ाती नहीं
मजबूर दिल से न हो तो पास आती नहीं
ख़ुशी मेरे दिल में हद से ज़्यादा है
तेरे संग ज़िन्दगी बिताने का इरादा है
ओ प्रीत के ये धागे तू भी संग मेरे बुन
सुन साहबा सुन ...

तू जो हाँ कहे तो बन जाए बात भी
हो तेरा इशारा तो चल दूँ मैं साथ भी
तेरे लिए सायबा नाचूँगी मैं गाऊँगी
दिल में बसा ले तेरा घर भी बसाऊँगी
हो डाल दे निग़ाह कर दे प्यार का शगुन
सुन साहबा सुन ...
सुन साहबा सुन ...

ओ मेरा ही ख़ून-ए-जिगर देगा गवाही मेरी
तेरे ही हाथों लिखी शायद तबाही मेरी
दिल तुझपे वारा है जान तुझपे वारूँगी
आए के न आए तेरा रस्ता निहारूँगी
ओ कर ले क़बूल मुझे होगा बड़ा पुन
सुन साहबा सुन ...