सुनs हो मजूर, सुनs हो किसान / विजेन्द्र अनिल
सुनs हो मजूर, सुनs हो किसान
सुनs मजलूम, सुनs हो नौजवान
मोरचा बनावs बरियार... कि सुरू भइल लमहर लड़इया हो
एक ओर राजा-रानी, सेठ-सहुकारवा
पुलिस-मलेटरी अउर जमींदारवा
दोसरा तरफ भूमिहीन बनिहारवा
खेतवा-खदानवां के करे जे सिंगारवा
हो भइया तूहूं, अब तेयार... कि सुरू भइल लमहर लड़इया हो
खेतवा में खटल, बधरिया अगोरल
जिनिगी में मालिके के घरवा सँगोरल
टभकत घउआ के कबहूँ न फोरल
बोरसी के अगिया के अबले ना खोरल
उठs बहल पुरवा बेआर... कि सुरू भइल लमहर लड़इया हो
तोहरे लइकवा बनावेला बनूकवा
तोहरे कमइया से भरल सनूकवा
ढरकल रतिया, उगल देखs सूकवा
जरि जइहें जुलुमी, तू मारs तनी फुंकवा
उमड़ल जनता के धार... कि सुरू भइल लमहर लड़इया हो
रनिया करेले रजधनिया में खेलवा
समराजबदिअन से कइलसि मेलवा
जनता के पेरिके निकाले रोज तेलवा
मुँह खोलि दिहला प मिलत बा जेलवा
निकसल ललका गोहार... कि सुरू भइल लमहर लड़इया हो
मोरचा बनावs बरियार... कि सुरू भइल लमहर लड़इया हो
सुन s हो मजूर, सुनs हो किसान
सुनs मजलूम, सुनs हो नौजवान
मोरचा बनावs बरियार... कि सुरू भइल लमहर लड़इया हो
रचनाकाल : 23.3.1982