भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुपणा.. / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गांम री गळ्यां
अर
घरां री
छतां माथै
खिड़की-जंगळां में
झांकता

अर
भींतां माथै
बैठ्या
भांत-भांत रा
पाट्या पुराणां
गाभा पैर्यां

अै
भोळा-भाळा टाबर

जिका
जातरियां री
आँख्यां में जोवै
गम्योड़ौ
लाड'र प्यार

आपरै
नान्है नान्है हाथां नै
इन्नै-उन्नै हलाय'र

पण
पड़ूत्तर में
बानै मिलै

फकत
धूंवैं रौ भतूळियौ

जिकौ
ले ज्यै बांरा
मखमली सुपणा

अर दे ज्यै
घिरणा रा बीज ।