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सुपने म्हं सुसराड़ डिगर ग्या बांध कै साफा खाकी / मेहर सिंह

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के बातां का जिक्र करूं बस कोन्या तन म्हं बाकी।
सुपने म्हं सुसराड़ डिगर ग्या बांध कै साफा खाकी।टेक

दिन छीपणे नैं होर्या था जाणू दीखैं दिवे चसते
गाम कै गोरै पहोंच गया मैं बुझण लाग्या रस्ते
आगै सी नै साला मिलग्या भाजकै करी नमस्ते
घर कै बारणें पहोंच गये हम दोनूं हंसते हंसते
साली पाणी ल्याण लागरी अदा दिखारी बांकी।

सालै नै मेरा बिस्तर लाया कर दिया ठाठ निराला
जुती काढ़ कै बैठग्या मैं खाट का देख बिचाला
इन्डीदार गिलास दूध का मोटा रोप्या चाला
हूर परी की एक नजर पड़ी मैं खाकै पड़या तिवाला
दूध म्हं मीठा कम लाग्या मनैं खाण्ड की मारी फांकी।

रोटीयां तांई आया बुलावण नाई तावल करकै
सासू जी तै स्याहमी बैठी थाली म्हं रोटी धरकै
घाल दिया घी बूरा साली नै आगे कै फिरकै
सहज सहज मैं लाग्या खावण थोड़ा थोड़ा डरकै
ठेक्यां पाछै झांक रही थी मेवा ईब तलक ना चाखी।

छोटी साली धोरेकै लिकड़ी करगी हेरा फेरी
ऊंट मटिला मेरा करगी कुदण लायक बछेरी
न्यून पडूं तै कुआ दिखै न्यून पडूं तै झेरी
आंख मारकै न्यूं कहगी मैं बहू बणुगी तेरी
कहै मेहरसिंह तनैं पड़ै काटणी खेती खड़ी जो पाकी।