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सुबह-सुबह / सत्यनारायण सोनी
Kavita Kosh से
ओस नहाई
मुंडेर
सूरज से
पहली मुलाकात कर
मुस्काई।
साफ-साफ
दिखने लगा
मिल की चिमनी से
निकलता धुआं।
धुंधला गए
दूरसंचार कम्पनियों के
टॉवर।
सड़क रोने लगी
सुबह-सुबह।
1995