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सुबह क़रीब है / ब्रजमोहन
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साथी न कोई ग़म कि तू ग़रीब है
सुबह क़रीब है ...
साथी ख़त्म कर दे उदासी का खेल
आ मिलके तोड़ेंगे दुनिया की जेल
दिल का बुरा नहीं है तू न बदनसीब है
सुबह क़रीब है ...
साथी अपना हर दिन एक जैसा
मेहनत को लूटे है दुनिया का पैसा
साथी हरेक लुटेरा हमारा रक़ीब है
सुबह क़रीब है ...
साथी ये तेरे दुख हैं हमारे
आ मिलके बन जाएँ हम अँगारे
साथी तेरे हाथों में ही तेरा नसीब है
सुबह क़रीब है ...