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सुबह की तस्वीरें-2 / अजित कुमार
Kavita Kosh से
सुबह फूलों की महक जग में बिखरती।
सैर को निकले हुओं का हृदय हरती।
--लड़कियाँ, लड़के, बड़े, बूढे, जवान,
लम्बे-तगड़े, छोटे-बौने, पहलवान,
प्रेमिकाएँ, पड़ोसी, अफ़सर ,कि हों अनजान,
भिखारी के भेस में फिरते हुए भगवान -–
सभी में उठती ख़ुशी की एक तान,
गूँजता सबमें ख़ुशी का एक गान।
बस, तभी अज्ञात-सी कोई लहर आती
सभी के कूल मन के भीग जाते,
पुलक की बूंदें छहरतीं,
घास पर ठिठके हुए जलबिन्दु:
पहले काँपते, फिर :
मुस्कराकर भूमि में अस्तित्व खो देते :
हवा जग में मदिर मधु-गन्ध का संचार करती,
और लगता-
साँस मानो ले रही है:
पेड़-पौधों, फूल-पत्तों, किरनपाशों
में बंधी ख़ामोश धरती।
सुबह फूलों की महक जग में बिखरती।