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सुबह की शहजादी / केदारनाथ अग्रवाल
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सुबह की शहजादी
रंगीन रेशमी बाल खोले,
जिस्म से हसीन,
आसमान से
जमीन पर
घूमने आई,
मदरास को-
उसने
महीन मुस्कराहट
सिंधु को उसने
देहोल्लास दिया
इस तरह उसने
आम आदमी का दिल
हुस्न के फरेब से जीत लिया
रचनाकाल: ०७-०६-१९७६