भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुबह न हुई / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुबह न हुई
रात के बाद
शाम हुई
फिर रात हुई
आपके राज में
सुबह का इंतजार
हमें बुढ़ा गया
बुढ़ा गए हम।

रचनाकाल: ११-०३-१९६८