भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुबह बने हैं ओस रात को बने सितारे / कुमार शिव
Kavita Kosh से
सुबह बने हैं ओस
रात को बने सितारे
मेरे होंठों पर जितने
स्पर्श तुम्हारे ।
देहगन्ध जो आसपास
बिखरी है मेरे
कई तुम्हारे उसने
अद्भुत चित्र उकेरे
महक नीम के फ़ूलों की
मेरी साँसों में
इन्द्रधनुष बन लिपट गए
बाँहों के घेरे
जामुन जैसे कभी
कभी लगते हैं खारे
मेरे होंठों पर जितने
स्पर्श तुम्हारे ।
दाड़िम जैसे सुर्ख़
पके अँगूरों जैसे
किशमिश जैसे मधुर
लाल अमरूदों जैसे
है मिठास चीकू या
खट्टी नारंगी की
अवर्णनीय प्यासे
रेती के धोरों जैसे
मीठे हैं शहतूत
कभी जलते अँगारे
मेरे होंठों पर जितने
स्पर्श तुम्हारे ।