भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुबह से पहले / नरेश अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अभी सुबह नहीं हुई है पूरी तरह से
हल्का-हल्का अंधेरा
बार-बार खिडक़ी से देखता हूं
जल्दी सुबह होने का इंतजार
ढूंढता हूं सूरज को
तलाशता हूं उस जगह को
जहां से होगा उदय यह
शायद उन पहाड़ों के पीछे से
या उन जंगलों के ऊपर से
अभी भी देर है
थोड़ा सा ही उजाला है
जिसमें दिखता है लिद्दर नदी का पानी बहता हुआ
बिल्कुल साफ-सुथरा बर्फ की तरह
और कितना अनभिज्ञ हूं यहां, तलाशता हूं दिशाएं
कहां है वो पूरब और कहां है उसका सूरज
और सभी सोये हैं
मार्गदर्शन के लिए कोई नहीं है यहां