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सुबह / शलभ श्रीराम सिंह
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सुबह-सुबह
किसने आकर मुझ से यह कहा
जीवन हूँ मैं
मेरे साथ आ!
धरती-जल-वृक्ष-लता-पुष्प
सभी धुले-धुले!
आँखों में रह-रह कर
अनगिन आकाश खुले!
हाथ के इशारे से
बुला रही है कब से
रंग भरी धूप
और
इठलाती हुई हवा!
जीवन हूँ मैं, मेरे साथ आ!