भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुबह / स्वाति मेलकानी
Kavita Kosh से
दूर बंजती घंटी
कुकर की सीटी
अनूप जलोटा के भजनों से
गूंजता लाउडस्पीकर
नल से टपकता पानी
खुलते बंद होते शटर
और गाड़ियों के
तेज हाँर्न के बीच
मोबाइल में अलार्म बजाता है
और
एक अजनबी सुबह हो जाती है।
जागने पर अचंभित
मैं खोजती हूँ
सपने में चहकती चिड़ियों को।