भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुबू अपना-अपना है, जाम अपना-अपना / शाद अज़ीमाबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


सुबू अपना-अपना है जाम अपना-अपना।
किये जाओ मयख़्वार काम अपना-अपना॥

न फिर हम न अफ़सानागो ऐ शबे-ग़म!
सहर तक है क़िस्सा तमाम अपना-अपना॥

जिनाँ<ref>जन्नत</ref> में है ज़ाहिद, तेरे दर पै हम हैं।
महल अपना-अपना, मुक़ाम अपना-अपना॥

हुबाबो!<ref>पानी के बुलबुलो</ref> हम अपनी कहें या तुम्हारी।
बस एक दम-के-दम है क़याम अपना-अपना॥

कहाँ निकहते-गुल, कहाँ बूए-गेसू।
दमाग़ अपना-अपना मशाम<ref>सूंघने का सामर्थ</ref> अपना-अपना॥

ख़राबात में मयकशो! आके चुन लो।
नबी अपना-अपना इमाम अपना-अपना॥

शब्दार्थ
<references/>