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सुब्रह्मण्यम भारती / परिचय

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तमिल भाषा के महाकवि सुब्रमण्यम भारती ऐसे साहित्यकार थे जो सक्रिय रूप से स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल रहे जबकि उनकी रचनाओं से प्रेरित होकर दक्षिण भारत में बड़ी तादाद में आम लोग आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।

भारती देश के महान कवियों में एक थे जिनकी पकड़ हिंदी बंगाली संस्कृत अंग्रेजी सहित कई भाषाओं पर थी पर तमिल उनके लिए सबसे प्रिय और मीठी भाषा थी। वह उन कुछ साहित्यकारों में थे जिनका गद्य और पद्य दोनों विधाओं पर समान अधिकार था।

भारती का जन्म 11 दिसंबर 1882 को एक तमिल गाँव में हुआ था। शुरू से ही वह विलक्षण प्रतिभा के धनी थे और कम समय में ही उन्होंने संगीत का अच्छा ज्ञान हासिल कर लिया था। 11 साल की उम्र में उन्हें कवियों के एक सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था जहाँ उनकी प्रतिभा को देखते हुए भारती ज्ञान की देवी सरस्वती का खिताब दिया गया।

भारती जब छोटे ही थे तभी माता का निधन हो गया। बाद में पिता का भी जल्दी निधन हो गया। वह कम उम्र में ही वाराणसी गए थे जहाँ उनका परिचय अध्यात्म और राष्ट्रवाद से हुआ। इसका उनके जीवन पर काफी प्रभाव पड़ा और कुछ हद तक उनकी सोच में बदलाव ला दिया।

बाद के दिनों में भारती ने ज्ञान के महत्व को समझा और पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्होंने काफी दिलचस्पी ली। इस दौरान वह कई समाचार पत्रों के प्रकाशन और संपादन से जुड़े रहे। इन समाचार पत्रों में तमिल दैनिक स्वदेश मित्रम तमिल साप्ताहिक इंडिया और अंगेजी साप्ताहिक बाला भारतम शामिल है। उन्होंने अपने समाचार पत्रों में व्यंग्यात्मक राजनीतिक कार्टून का प्रकाशन शुरू किया था।

इन पत्रों से न सिर्फ वह लोगों को अपेक्षित ज्ञान दिलाने में सफल रहे बल्कि उनकी रचनाओं का भी प्रकाशन हुआ। उसी समय उनकी रचनाधर्मिता चरम पर थी। उनकी रचनाओं में एक ओर जहाँ गूढ़ धार्मिक बातें होती थी वहीं रूस और फ्रांस की क्रांति तक की जानकारी होती थी। वह समाज के वंचित वर्ग और निर्धन लोगों की बेहतरी के लिए प्रयासरत रहते थे।

भारती 1907 की ऐतिहासिक सूरत कांग्रेस में शामिल हुए थे जिसने नरम दल और गरम दल के बीच की तस्वीर स्पष्ट कर दी थी। भारती ने तिलक अरविन्द तथा अन्य नेताओं के गरम दल का समर्थन किया था। इसके बाद वह पूरी तरह से लेखन और राजनीतिक गतिविधियों में शामिल हो गए।

वर्ष 1908 में इंडिया के मालिक को मद्रास में गिरफ्तार कर लिया गया और उनकी गिरफ्तारी भी की जानी थी। गिरफ्तारी से बचने के लिए वह पांडिचेरी चले गए जो उन दिनों फ्रांसीसी शासन में था।

भारती पांडिचेरी में भी कई समाचार पत्रों के प्रकाशन संपादन से जुड़े रहे और अंग्रेजों के खिलाफ लोगों में देशभक्ति की अलख जगाते रहे। पांडिचेरी में प्रवास के दिनों में वह गरम दल के कई प्रमुख नेताओं के संपर्क में रहे। वहाँ उन्होंने कर्मयोगी तथा आर्या के संपादन में अरविन्द की सहायता भी की थी।

उन्होंने संगीत के क्षेत्र में भी काफी काम किया। उनके कुछ गीत अभी भी कर्नाटकी संगीत कन्सर्ट में बेहद लोकप्रिय हैं।

भारती 1918 में ब्रिटिश भारत में लौटे और उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें कुछ दिनों तक जेल में रखा गया। बाद के दिनों में उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा और 11 सितंबर 1921 को निधन हो गया।

भारती 40 साल से भी कम समय तक जीवित रहे और इस अल्पावधि में भी उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में काफी काम किया और उनकी रचनाओं की लोकप्रियता ने उन्हें अमर बना दिया।