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सुब्हा की ताज़गी/ सजीव सारथी
Kavita Kosh से
सुबह की ताज़गी हो,
शबनम की बूँद कोई,
फूलों की पंखुड़ी पर,
किरणों का प्यार लेकर,
जैसे बिखर रही हो,
तुम ही बिखर रही हो....
सुबह की ताज़गी हो....
सरगम की बांसुरी हो,
मौसम की बात कोई,
महकी हुई फ़िज़ा में,
गीतों की मस्त धुन पर,
जैसे मचल रही हो,
तुम ही मचल रही हो.....
सरगम की बांसुरी हो...
चंदा की चांदनी हो,
चांदी की नाव कोई,
बेखुद-सी इस हवा में,
जैसे लहर-लहर पे,
इतरा के चल रही हो.
तुम ही तो चल रही हो....
चंदा की चाँदनी हो....
- स्वरबद्ध गीत, अल्बम – पहला सुर, संगीत – ऋषि एस