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सुब्ह का एहतिमाम भी ना हुआ / नवीन जोशी
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सुब्ह का एहतिमाम भी ना हुआ,
रात का इंतिज़ाम भी ना हुआ।
प्यास जागी है क्यूँ चराग़ों की,
अभी तो वक़्त-ए-शाम भी ना हुआ।
ज़िंदगी कह रही थी "आ! जी ले!" ,
मुझसे इतना-सा काम भी ना हुआ।
कभी होने नहीं दी बदनामी,
सो हुआ ये कि नाम भी ना हुआ।
अपना घर छोड़ भी दिया मैंने,
तेरे दर पर क़याम भी ना हुआ।
क़िस्सा-ए-मुख़्तसर ही था लेकिन,
तू 'नवा' से तमाम भी ना हुआ।