भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुब्ह / सज्जाद बाक़र रिज़वी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आख़िर-ए-शब थी
वो सेहन-ए-मस्जिद में बे-सुद पड़ा
मैं ने उस को जगाया

उठ
ये शहादत का तकबीर का वक़्त है
दुआओं की तस्ख़ीर का वक्त है
वो उठा मेरा क़ातिल जिस मैं ने ख़ुद ही उठाया
उठा
और मेहराब-ए-मस्जिद में मेरे लहू से चराग़ाँ हुआ