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सुमरु सुमरु मन! शंकर समय भयंकर जानि / चन्दा झा

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सुमरु सुमरु मन! शंकर समय भयंकर जानि।
ककर हृदय नहि कलुषित शासन कलि नृप पानि॥
केवल शिव करुणाकर सेवयित नहि जन हानि॥
भक्ति कल्पलति जानह परम परशमनि खानि॥
कतहु विषयमे न लागह त्यागह अनुचित मानि।
सुखसौँ अन्त विलसबह ‘चन्द्र’ चूड़ रजधानि॥