भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुमरु सुमरु मन! शंकर समय भयंकर जानि / चन्दा झा
Kavita Kosh से
सुमरु सुमरु मन! शंकर समय भयंकर जानि।
ककर हृदय नहि कलुषित शासन कलि नृप पानि॥
केवल शिव करुणाकर सेवयित नहि जन हानि॥
भक्ति कल्पलति जानह परम परशमनि खानि॥
कतहु विषयमे न लागह त्यागह अनुचित मानि।
सुखसौँ अन्त विलसबह ‘चन्द्र’ चूड़ रजधानि॥