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सुयश नहीं कब होता है किसको प्यारा / रंजना वर्मा

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सुयश नहीं कब होता है किसको प्यारा
बहे अनवरत गंगा की निर्मल धारा

सुलग रही है सीली लकड़ी जंगल में
जिसे बुझाना भूल गया था बंजारा

मारा करती है दुश्मनी सभी को पर
हमें तुम्हारे प्यार मुहब्बत ने मारा

सूख रहा है गला अधर भी पपड़ाये
प्यास बुझाने को लेकिन आँसू खारा

आँखों के आँसू पलकों पर सूख गये
जिजीविषा के आगे दर्द सदा हारा