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सुरा निषेधक / भारत भाग्य विधाता / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

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बापू तोहें सचमुच मेॅ ही श्वेत कमल रं खिललोॅ छौ,
सत्य अहिंसा नाँखि ही तेॅ, तों भारत केॅ मिललोॅ छौ ।

की होय छै, तोहें अमूत्र्त छौ, आँखी संे बड्डी छौ दूर,
पर तोरोॅ छवि जे मन मेॅ छै, हुऐ नै पारेॅ चकनाचूर ।

लोक हित लेॅ जे कर लेॅ छौ, ऊ तेॅ देवता के ही काम,
भारत केॅ तोंय पूज्य बनैलौ देवसिनी के उज्जवल धाम ।

तोरोॅ चिन्ता लोक-देश लेॅ अद्भुत-अनुपम आरो पुनीत,
अनाचार, अपराध, अनैतिक, तोरा सेॅ छेलै भयभीत ।

जहाँ कहीं भी नीति विरोधी दिखलावै कुछुओ टा काज,
तोहें सत्य अहिंसा ले लेॅ आवौ वै ठां लै स्वराज ।

बापू तोरोॅ गाँम-प्रेम तेॅ देश प्रेम रं ही उज्जवल,
लोगोॅ के दुख देखी तोरोॅ हृदय हमेशे ही छल-छल ।

सोचै छेलौ सबके लेली, सबके दुख के की कारण ?
केना केॅ दुख जावेॅ पारेॅ ? मन पर ई चिन्ता धारण ।

बापू जे ई बुझलेॅ छेलै गामोॅ केरोॅ दुख के जोॅड़
कैन्हेॅ बरसै छै लोगोॅ पर दुक्खोॅ केरोॅ ऐतेॅ झोॅड़ ।

पुस्तैनी सेॅ मिलै गरीबी, वै पर नशा के बज्जड़ लत,
की होतै जेठोॅ भादोेॅ में जेकरोॅ घर पर नै छै छत ।

हाथोॅ में मुट्ठी भर पैसा वै पर दारू के लत छै,
दीन दलित के एकरा सेॅ तेॅ निश्चय ही पुरलोॅ गत छै ।

एक तेॅ नै छै वहीं व्यवस्था कुछ इलाज के दीनोॅ केॅ,
नशापान के रोग अखम्मर की करतै धनहीनोॅ केॅ !

बापू केॅ ई अचरज छेलै, नशा विरोधी जे भी जन,
वहू विरोधी नै छै एकरोॅ आवै छै जे यै सेॅ धन ।

बापू सोचै जों आजादी लड़ला सेॅ, मिलियै जाय छै,
तेॅ आधे आजादी होतै, बिन स्वराज के गढ़ला सेॅ ।

सच्चा तेॅ स्वराज यही छै, नशा नै ढूकेॅ कोय्यो गाँव,
गाँमोॅ के सीमा पर ऐथैं, जमी जाय बस ओकरोॅ पाँव ।

आखिर की पीला सेॅ होय छै, रोगोॅ केॅ आमंत्राण दै,
ई छोड़ी केॅ श्रम के साथें, साथ रहै के ही प्रण लै ।

ई शराबखोरी तेॅ दुश्मन दीन-दलित के श्रम-धन के,
एकरोॅ रहतेॅ कहाँ रहै छै ठौर ठिकानोॅ जीवन के ।

जांे जल्दी नै रुकै नशा छै, तेॅ समझोॅ ई भी निश्चित,
आजादी के जोगी राखवोॅ, बड़ा कठिन छै, कखनू चित ।

जे शराब भट्ठी के मालिक, ओकरे ई कत्र्तव्य बनै,
दीन-दलित के जीवन लेली, कर जतना दै, बेसी दै ।

वहा करोॅ संे दीन-दुखी के जीवन केॅ राहत मिलतै,
सेॅ मुक्ति पावी लुटबैया पटरी पर जीवन चलतै ।

जे ज्यादा कर ऐतै वै सेॅ शिक्षित होतै दीन-दलित,
तभिये ऐतै जे चाही छी हमरोॅ ऊ स्वराज ललित ।

सब केॅ जानै लेॅ ई होतै, ई शराबखोरी के लत,
दीन-दलित मजदूरे केॅ ही निगलै, करै छै क्षत-विक्षत ।

ई कहबोॅ कि लत शराब के, दुख सेॅ पैवोॅ मुक्ति छै,
एकदम झूठ, अनैतिक छेकै, मुक्ति के सौ युक्ति छै ।

देश उठौ ई क्रान्ति लेली, मुक्त नशा सेॅ हुएॅ समाज,
बापू अभियो गूंजी रहलौं तोरोॅ अद्भुत स्वर्गिक काज ।