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सुरा पान से, प्रीति गान से / सुमित्रानंदन पंत
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सुरा पान से, प्रीति गान से
आज पांथशाला है गुंजित,
मधु निकुंज सी खग पिक कूजित!
कोटि प्रतिज्ञा तोड़, अवज्ञा
धर्म कर्म की मैंने की नित,
पी पी प्रेयसि का अधरामृत!
उमर कलुषमय, प्रभु करुणामय,
करुणा औ’ कल्मष चिर परिचित,
मेरे अघ से क्षमा अलंकृत!