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सुरा में दुरा स्वर्ग का सार / सुमित्रानंदन पंत

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सुरा में दुरा स्वर्ग का सार,
भले हो उमर ख़ुमार!
सुमन उर में सौरभ उद्गार,
भले तन छेदे ख़ार!

प्रेयसी का उर प्रणयागार
वश्यता भी स्वीकार!
मिलन में मर्मोल्लास अपार,
विरह का भी यदि भार!