भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुरूर उनकी आँखों में आया नहीं है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुरूर उनकी आँखों में आया नहीं है।
अभी आइना मुस्कुराया नहीं है।

उमीदें हैं जिन्दा अभी दोस्ती की,
अभी उसने वह ख़त जलाया नहीं है।

पता है उसे कौन कातिल है उसका,
जबां पर मगर नाम आया नहीं है।

लिया हर सितम मान अपना मुकद्दर,
मगर सच से पर्दा उठाया नहीं है।

उसी पर बरसती है रहमत ख़ुदा की,
किसी पर सितम जिसने ढ़ाया नहीं है।

अभी म्यान में अपनी तलवार रखिये,
अभी जंग का वक़्त आया नहीं है।

गिला किससे ‘विश्वास’ शिकवा यहाँ पर,
सभी अपने कोई पराया नहीं है।