भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुर्खियाँ निहार लो / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
नये विचार लो !
समाज की गिरी दशा सुधार लो,
सुधार लो !
रुका प्रवाह फिर बहे,
सप्राण गीति-स्वर कहे,
हृदय अपार स्नेह-धन
भरे उठें असंख्य जन,
प्रभात को धरा जगो पुकार लो,
पुकार लो !
वतन सुसंगठित रहे,
न एक जन दमित रहे,
न भूख-प्यास शेष हो,
बना नवीन वेश हो,
समय बहाल, सुर्खियाँ निहार लो,
निहार लो !
विभोर हर्ष-धार में,
सफ़ेद लाल प्यार में,
बहो, बहो, बहो, बहो !
बनी नयी कुटीर है, विहार लो,
विहार लो !
1950