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सुर के गन्ध-पराग / रामइकबाल सिंह 'राकेश'
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राग पीलू
सुर के गन्ध-पराग,
झरते अन्तर्नभ-वीणा से-
नव जीवन के राग।
ध्वनित प्रकृति के हृदय-तार से मालकौस, हिण्डोल,
एक अरूप एकता के सरगम में गुम्फित बोल,
कुसुमदामदोला पर आई मधुऋतु गाने फाग।
भू-यौवन से आत्मदान की उठकर एक हिलोर,
खींच रही नव वशीकराण से मन को अपनी ओर
मेरी ग्राम-मूर्च्छना पिक-स्वर में सुलगाती आग।
उमड़ रहा आनन्द-सिन्धु का एक प्रवाह अशेष,
आज कर दिया उसमें सीमा को मैंने निःशेष,
अँगड़ाई ले कर चेतनता उठी नींद से जाग।
(15 फरवरी, 1974)