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सुलगती धूप में साया हुआ है / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
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सुलगती धूप में साया हुआ है
कहीं आंचल वो लहराया हुआ है
दिलों में बस रही है कोई सूरत
ख़यालों पर कोई छाया हुआ है
पढ़ो तो, हम ने अपने बाज़ुओं पर
ये किस का नाम गुदवाया हुआ है
उस आंसू को कहो अब एक मोती
जो पलकों तक ढलक आया हुआ है
किसी का अब नहीं वो होने वाला
वो दिल जो तेरा कहलाया हुआ है
किसी हीले उसे मिल आओ 'रहबर`
वो दो दिन के लिये आया हुआ है