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सुवाल / ॠतुप्रिया
Kavita Kosh से
मनभावणौ
ठण्डौ च्यानणौ
थूं
कठै सूं ल्यावै
चाँद
रूंख-रूंख माथै
उडती-बैठती कोयलड़ी
थूं
मीठा-मीळा गीत
किंयां सुणाद्यै डावड़ी
फूलां माथै
उडतौ-घूमतौ
इत्ती फूटरी
गुणगुणाट
थूं कठै सूं
ल्यायौ भंवरा
म्हारै काळजै रै भीतर
घणकरी चीजां सारू
कठै सूं आवै सुवाल
कांईं ठाह।