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सुष्मिता / दिनकर कुमार

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देखा है तुम्हारे माँसल शरीर को और शरीर के अंगों को
तुम्हारी तराशी हुई हँसी को और दर्शकों की ख़ुशी को
सुष्मिता तुम्हें मनीला में मुँह छिपाकर अभिनय करते देखा है
तुम्हारा सपना पूरा हुआ सुष्मिता और इस देश का भी
सपना पूरा हो गया जो भूखा सोता है सपनों में जीता है
 
अब तुम सपनों का वितरण कर सकोगी सुष्मिता
जो राधा बचपन में ब्याही गई किसी वृद्घ के साथ
जो सीता देख नहीं पाई कभी स्कूल पढ़ नहीं पाई ककहरा
जो गीता गाँव से पहुँच गई किसी शहरी कोठे पर
उन सभी राधाओं सीताओं गीताओं से अलग होकर
 
एक गर्व का वितरण कर रही हो तुम सुष्मिता
तुम चाहती हो कि अपने सड़े हुए अंगों के साथ
तुम्हारा यह देश दर्द को भूलकर मुस्कराए और
अघाए हुए पश्चिम की तरह तुम्हारे अंगों को देखे

अब हम तुम्हें अलग-अलग रूपों में देखेंगे सुष्मिता
तुम्हारी देह एक ही होगी पोशाकें अलग-अलग होंगी
बाज़ार अलग-अलग होंगे व्यापारी अलग-अलग होंगे

हाँ सुष्मिता कुपोषण का शिकार है तुम्हारा देश
जहाँ बच्ची सीधे बूढ़ी बन जाती है आता नहीं है
उनके जीवन में वसंत आता नहीं उल्लास
तुम्हारे सौंदर्य से हम आतंकित हैं सुष्मिता

यह पश्चिमी उपकरण में गढा गया सौंदर्य है
पश्चिम का पैमाना है पश्चिम की आँखें हैं
ख़ुश हुआ कोलंबस ख़ुश हुआ आख़िर वह
पहुँच ही गया भारतवर्ष