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सुहानी चाँदनी रातों में ये छाया नशा क्या है / रंजना वर्मा

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सुहानी चाँदनी रातों में ये छाया नशा क्या है।
अँधेरा ही बताये रौशनी से अब गिला क्या है॥

बचाती लाज मुफ़लिस की है ऐसी तीरगी होती
वगरना रौशनी की रात छुपने को बचा क्या है॥

वफ़ाएँ भूल कर हमसे अचानक दूर हो बैठे
चलो अब यह बता भी दो हुई हमसे ख़ता क्या है॥

अकेले में हमें अक्सर तुम्हारी याद है आती
तुम्हारे ख़्वाब तड़पाते ये आख़िर माज़रा क्या है॥

अजब बाज़ीगरी है इश्क़ की है बेखुदी ऐसी
नहीं कुछ होश है खुद का न ये जानें पता क्या है॥

झुकीं महबूब की पलकें समन्दर हो गया काला
कसकती याद माज़ी की न जाने हो रहा क्या है॥

चले हैं उम्रभर फिर भी कहीं दिखती नहीं मंजिल
भटकते हैं कदम कोई बता दे रास्ता क्या है॥