भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सु-अवसर/ सियाराम शरण गुप्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विगत हे जलजात! निशा हुई,
द्युतिमयी वह पूर्व दिशा हुई।
छिप उलूक गये भय भीति से
अब विकास करो तुम प्रीति से।