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सूक्ष्मा / दीप्ति गुप्ता
Kavita Kosh से
तू इतनी सूक्ष्म, तू इतनी सूक्ष्म कि
तुझे देखा नहीं जा सकता
छुआ नहीं जा सकता
बस तुझे महसूस किया जा सकता है,
जब तेरा अस्तित्व तन मन में समा जाता है,
हर साँस बोझिल, दिल बुझा-बुझा हो जाता है,
तू "सूक्ष्म" पर तेरा बोझ कितना असहनीय!