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सूखता पानी / महेश चंद्र पुनेठा
Kavita Kosh से
सूखते जा रहे हैं
नौले धारे
ताल-पोखर
घट रहा है
भूमिगत जल स्तर
पीछे खिसक रहे हैं
ग्लेशियर
नदी बदल रही है
रेत में ।
चारों ओर
सूखता जा रहा है पानी
ख़तरनाक है यह स्थिति
मनुष्य मात्र के
अस्तित्व के लिए
प्रकृति के लिए ।
पर
इससे भी ख़तरनाक है
सूखना
मनुष्य के भीतर का पानी
आँखों का पानी
बचाया नहीं जा सकता
जिसे
किसी विज्ञापनी संदेश से
या डाँलरी अभियान से ।