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सूखती शाखों में फिर दम आ गया / नज़ीर बनारसी

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सूखती शाखों में फिर दम आ गया
आइये फागुन का मौसम आ गया

आम की डाली पे कोयल आ गयी
फस्ल के बाजू में दम-खम आ गया

तुम भी आ जाआ चमन का फूल-फूल
जिन्दगी का ले के परचम आ गया

लोग लहरा कर गले मिलने लगे
दिल के दरियाओं का संगम आ गया

मुस्कुरायी सुबह की पहली किरन
आने वाला ऐ शबेगम आ गया

कर सके खुलकर न दो बातें कभी
जब वो आये एक आलम आ गया

इश्क ने कुछ इस तरह अँगड़ाई ली
जुल्फे बेपरवा में भी खम आ गया

दिलजले के पास तुम क्या आ गये
जेठ में सावन का मौसम आ गया

इक तुम्हारी बात रखने को ’नजीर’
अपनी महफिल करक बरहम <ref>तितर-बितर</ref> आ गया

शब्दार्थ
<references/>