भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूखा में हरियरी / चंद्रदेव यादव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गोरु-गइया हाय दइया!
लोग लुगइया हाय दइया!
चिरई चुनमुन मरें पियासल
मरै बिलइया, हाय दइया!

धरती फाटल हाय दइया!
जीव उचाटल हाय दइया!
सूखल नद्दी-पोखर अउरू
ताल-तलइया, हाय दइया!

चारा मिलै न भूसा जी
अइसन पड़लैं सूखा जी
कहाँ लुकइला हे निरमोही
बादर भइया, हाय दइया!

सात कोस पर पानी रे
पानी सोना-चानी रे
पानी क खेती भइल सूखा
डोलल नइया, हाय दइया!

जलकल वालन क सलकल ह
अधिकारिन क मन बिहबिल ह
तिरखावंत के खातिर हो गइल
काल मुदइया, हाय दइया!

गाल बजावा ना सरकार
तोहरे राज के ह धिक्कार
भुक्खल-प्यासल लोग मरत हँ
कठिन समइया, हाय दइया!