सूखे पत्तों सा यह शहर क्यों है / विनय कुमार
सूखे पत्तों-सा यह शहर क्यों है ?
आग से सबको इतना डर क्यों है ?
क्या चिता भी है यज्ञ की वेदी
आग ईश्वर है तो ईश्वर क्यों है ?
दिल में बेघर के क्यों नहीं रहता
यह इमारत ख़ुदा का घर क्यों है ?
जिसके पीछे फ़साद चलता है
वह शरीफ़ों का राहबर क्यों है ?
आईना आपका दुश्मन क्यों है?
आपके हाथ में पत्थर क्यों है ?
आजकल आपकी ग़िज़ा क्या है?
आपकी बात में ज़हर क्यों है ?
आपकी रूह बुझ गयी कैसे
आपका जिस्म मुनव्वर क्यों है ?
आपने क्या दिया मुसिव्वर को
शक्ल तस्वीर में बेहतर क्यों है ?
दाँत पैने हैं, दुम लरज़ती है
हर फ़रिश्ते में जानवर क्यों है ?
दर्दे-इमरोज़ क्यों नहीं कम है
दर्दें-माज़ी के बराबर क्यों है ?
नाम लिखना भी न आता जिसको
लिखने बैठा वो मुक़र क्यों है ?
दर्द महिफ़ल मिज़ाज क्यों इतना
नाचता रात-रात भर क्यों है ?
जिसको होना था सबके दामन पर
दाग़ वह सिर्फ़ चांद पर क्यों है ?
चोर सब मैच देखते होंगे
संतरी आज ग़श्त पर क्यों है ?
बसना है क्या नये अंधेरों को
रोशनी आजकल इधर क्यों है ?
पेट जलता था तो शायर क्यों था?
पेट भरता है तो शायर क्यो है ?
आके सीने से लगो फिर समझो
मेरे सीने में समंदर क्यों है?