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सूखे पातों का हरियर मन / मृदुला सिंह
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पातों का सूख कर गिरना
जगह देना है नवांतुगों के लिए
वसंत का आना
और कोपलों का
फूट कर गुलाबी होना
जंगल के हरे स्वप्न का
हकीकत में बदलना है
ये हौसले वाले हैं
मुरझा कर नही
सूख कर गिरते हैं
करते हैं जिंदगी पूरी
और मिलते हैं जमीन से
वह भी अकेले नही समूह मे
सारे लगते है गले आपस मे
रचते हैं वितान सौहार्द का
मद्धिम हवा की धुन पर
इनकी थिरकन
भर देती है जंगल का शून्य
नाच गा कर एक हो जाना
और फिर समा जाना
धरती में
उसे उर्वर करने की खातिर
वे उपेक्षित
मौसमों की मार सह कर भी
करते है बीज की प्रतीक्षा
वसुंधरा की सार्थकता के लिए
जाने कहाँ से सीखा होगा
इस तरह
दूसरों को जीवन देने का धर्म