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सूखे होंठ सुलगती आँखें सरसों जैसा रंग / शबनम शकील

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सूखे होंठ सुलगती आँखें सरसों जैसा रंग ।
बरसों बाद वो देखके मुझको रह जाएगा दंग ।

माज़ी का वो लम्हा मुझको आज भी ख़ून रुलाए,
उखड़ी-उखड़ी बातें उसकी ग़ैरों जैसा ढंग ।

दिल को तो पहले ही दर्द की, दीमक चाट गई थी
रूह को भी अब खाता जाए, तन्हाई का ज़ंग ।

इन्हीं के सदके यारब मेरी मुश्किल कर आसान,
मेरे जैसे और भी हैं दिल के हाथों तंग ।

सब कुछ देकर हँस दी और फिर कहने लगी तक़दीर,
कभी न पूरी होगी तेरे दिल की यह उमंग ।

आज न क्यों मैं चूडियाँ अपनी, किर्ची-किर्ची कर दूँ
देखी आज एक सुन्दर नारी, प्यारे पिया के संग ।

माज़ कोई तुझसे हारे जीत पर मान न करना,
जीत वो होगी जब जीतोगे अपने आप से जंग ।