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सूखै गळो पग बळै म्हारा / सांवर दइया
Kavita Kosh से
सूखै गळो पग बळै म्हारा
ऐ जेठ-असाढ तळै म्हारा
छीयां लारै भाजै औ मन
नित नुंवा सुपना छळै म्हारा
आ पीड़ नित सींचै काळजो
आखर आक-सा पळै म्हारा
ओजूं चेतैला आ धूणी
ऐ बोल सुणलो फळै म्हारा
देवैला हिवड़ै नै उजास
आंख सूं आंसू ढळै म्हारा