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सूझतो आंधो / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
चींठै
मीठै रै
मकोड़ो
बिंयां
विकार रै
मन,
हु‘र
रस मगन
मुरछीजज्या
चेतण,
थकां दीठ
करै अदीठ
चढ़तो सूरज,
कोनी-अणभूतै
साच
बण ज्यासी
मौत
पिलगल‘र
गुड़ री
भेली !