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सूति नऽ हो धणियेर सपनो हो देख्यो / निमाड़ी
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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सूति नऽ हो धणियेर, सपनो हो देख्यो,
सपना को अरथ बताओ भोळा धणियेर।।
मानसरोवर मनऽ सपना मंऽ देख्यो,
भर्यो तृर्यो भंडार मनऽ सपना मंऽ देख्यो।
वहेती सी गंगा मनऽ सपना मंऽ देखी,
भरी तुरी वावड़ी मनऽ सपना मंऽ देखी।
श्रावण तीज मनऽ सपना मंऽ देखी,
कड़कती बिजळई मनऽ सपना मंऽ देखी,
गोकुळ कान्हो मनऽ सपना मंऽ देख्यो,
तरवरतो बिच्छू मनऽ सपना मंऽ देख्यो,
गुलाब को फूल मनऽ सपना मंऽ देख्यो,
झपलक दिवलो मनऽ सपना मंऽ देख्यो,
कवळारी केळ मनऽ सपना मंऽ देखी,
वाड़ उप्पर की वांझुली मनऽ सपना मंऽ देखी।
पेळा वाळई नार मनऽ सपना मंऽ देखी,
ऊगतो सो सूरज मनऽ सपना मंऽ देख्यो।
सपना को अर्थ बताओ भोळा धणियेर।।