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सूत्र / प्रताप सहगल
Kavita Kosh से
तुम्हारे सब सवालों में
सबसे गहरा सवाल है तुम्हारी चेतना का
कई खण्डों में बंटी हुई
चेतना वृत्ताकार होकर
सभी दिशाओं में घूमती है
एक तेज़ी और बेचैनी
एक पोल/दो पोल
फिर कई पोल
पोलों की टकराहट
ध्रुवीकरण का प्रयास
और चेहरों पर बिखरी हुई मुस्कराहट.
शायद कोई दिशा
संकेत या जवाब
तुम्हारे अन्तर की रेखाएं
क्यों हैं आवृत्त एक अज्ञात अन्धेरे से
क्यों फैला हुआ है उन पर हल्का कोहरा
कोहरे और अन्धेरे की झिल्ली जो फटे
तो मिल जाए तुम्हारे हर सवाल का जवाब
और फैल जाए मोतियों की मुस्कराहट
कर दे तुम्हारी बिखरी हुई चेतना को एक सूत्र
एक सूत्रजो मुझे बाँध लेने के लिए
किसी भी शक्तिशाली उपकरण से अधिक शक्तिशाली है.